गधा और बाघ की कहानी: मूर्खता का फल

जानें गधा और बाघ की कहानी जो हमें सिखाती है कि अहंकार और झूठी चालाकी का फल हमेशा बुरा होता है। यह प्रेरक हिंदी कहानी बताती है कि झूठी बड़ाई करने से आप कुछ समय के लिए तो जीत सकते हैं, लेकिन सच्चाई हमेशा सामने आती है।

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गधा और बाघ की कहानी: मूर्खता का फल:- एक घने और विशाल जंगल में, जहाँ हरे-भरे पेड़ और कल-कल करती नदियाँ थीं, एक बहुत ही सीधा-साधा मगर थोड़ा मूर्ख गधा रहता था, जिसका नाम था धूर्तदास। धूर्तदास को लगता था कि वह जंगल के बाकी सभी जानवरों से ज़्यादा बुद्धिमान है, जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत थी। दूसरी ओर, उसी जंगल में एक शक्तिशाली लेकिन भोला-भाला बाघ रहता था, जिसका नाम था गर्जन। गर्जन अपनी ताक़त के लिए जाना जाता था, लेकिन उसे चालाकी भरी बातें समझ में नहीं आती थीं।

गधे का मूर्खतापूर्ण दावा

एक गर्म दोपहर में, धूर्तदास अपने रास्ते पर जा रहा था जब उसकी मुलाक़ात प्यासे गर्जन से हुई। गर्जन नदी के पास पानी पीने आया था। गर्जन को देखते ही, धूर्तदास के मन में एक शैतानी विचार आया। वह अपनी मूर्खता भरी चालाकी पर बहुत गर्व करता था।

"नमस्ते, गर्जन महाराज," धूर्तदास ने बड़ी ही आत्मविश्वास भरी आवाज़ में कहा। "क्या तुम जानते हो कि मैं यहाँ का नया राजा हूँ?"

गर्जन ने हैरानी से उसे देखा। "राजा? तुम? तुम तो एक गधे हो! मैं इस जंगल का राजा हूँ!"

धूर्तदास ने अपनी गर्दन अकड़ाई और कहा, "तुम्हारी जानकारी ग़लत है, गर्जन। मुझे ब्रह्मा ने एक विशेष वरदान दिया है। मेरी पीठ पर एक ऐसा जादुई निशान है, जो मुझे सबसे शक्तिशाली और बुद्धिमान बनाता है। मुझे भी पहले विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब से यह निशान आया है, मैं हर लड़ाई जीतता हूँ और हर समस्या को पल भर में सुलझा लेता हूँ।"

गर्जन ने गधे की पीठ पर देखा, जहाँ कुछ नहीं था, बस एक साधारण-सी भूरे रंग की त्वचा थी। लेकिन धूर्तदास की बातों में इतना आत्मविश्वास था कि गर्जन को एक पल के लिए यकीन होने लगा। वह सोचने लगा, "क्या सचमुच ऐसा कोई जादुई निशान है जो मुझे नहीं दिख रहा?"

धूर्तदास ने गर्जन के मन में चल रही उलझन को भांप लिया और अपनी बात को जारी रखा, "तुम्हें शायद यह निशान अपनी आँखों से न दिखे। यह सिर्फ वही देख सकता है जो बहुत शक्तिशाली हो, और तुम तो हो ही! यह एक रहस्यमय शक्ति है।"

भोले गर्जन को लगा कि यह गधा कुछ ख़ास है। उसे अपने शक्तिशाली होने का एहसास तो था, लेकिन वह ऐसी चीज़ों के बारे में नहीं जानता था।

"अगर तुम सच कह रहे हो, तो तुम्हें यह वरदान क्यों मिला?" गर्जन ने पूछा।

धूर्तदास ने तुरंत कहानी बनाई, "क्योंकि मैं इस जंगल के हर जीव की मदद करता हूँ। मैंने एक बार एक ऋषि को जंगल में रास्ता दिखाया था और उन्होंने मुझे यह वरदान दिया। उन्होंने कहा कि मेरी पीठ पर एक ऐसा अदृश्य चिह्न होगा जो मुझे अजेय बना देगा।"

यह सुनकर गर्जन पूरी तरह से झाँसे में आ गया। उसने सोचा कि यह गधा तो महान है और अगर मैं इसे नाराज़ करूँगा, तो मुझे नुक़सान हो सकता है।

मूर्खता का राज और अहंकार का चरम

अगले कुछ दिनों तक, धूर्तदास ने अपने इस झूठे पद का पूरा फ़ायदा उठाया। उसने गर्जन को अपनी हर बात मनवाने के लिए मजबूर किया। एक दिन धूर्तदास को बहुत भूख लगी थी। वह बोला, "गर्जन, जाओ मेरे लिए मीठे फल और रसीली घास लेकर आओ। अगर तुम ऐसा नहीं करोगे, तो मेरी जादुई शक्ति तुम्हें हमेशा के लिए कमज़ोर कर देगी।"

गर्जन बेचारा डर गया और तुरंत उसके लिए खाने का इंतज़ाम करने चला गया। जंगल के दूसरे जानवर यह सब देखकर बहुत हैरान थे। एक छोटा और बुद्धिमान लोमड़ी, जिसका नाम चालाक था, यह सब देख रहा था। उसे पता था कि धूर्तदास सिर्फ एक साधारण गधा है और वह झूठ बोल रहा है।

"यह क्या हो रहा है?" लोमड़ी ने सोचा। "एक गधा बाघ को हुक्म दे रहा है! मुझे इस रहस्य का पता लगाना होगा।"

लोमड़ी ने मगरमच्छ से बात की। मगरमच्छ ने कहा, "हाँ, मैंने भी सुना है। गर्जन कहता है कि गधे की पीठ पर कोई जादुई निशान है।"

लोमड़ी ने अपने दिमाग का इस्तेमाल किया और एक योजना बनाई।

योजना का खुलासा और सच्चाई का पर्दाफाश

एक शाम, जब धूर्तदास अपनी बड़ाई कर रहा था, लोमड़ी उसके पास गया।

"धूर्तदास महाराज," लोमड़ी ने सम्मान से कहा। "मैंने सुना है कि आपकी पीठ पर जादुई निशान है। क्या मैं उसे छूकर आशीर्वाद ले सकता हूँ?"

धूर्तदास ने अकड़ते हुए कहा, "नहीं! यह जादुई निशान किसी को दिखाई नहीं देता। सिर्फ मैं ही इसकी शक्ति को समझता हूँ।"

चालाक लोमड़ी ने कहा, "ठीक है, महाराज। पर मैंने सुना है कि जब आप पानी में डुबकी लगाते हैं, तो यह निशान चमकने लगता है। क्या यह सच है?"

यह सुनकर धूर्तदास चौंक गया। उसने कभी इस बारे में नहीं सोचा था। उसने पानी में जाने से साफ़ इंकार कर दिया। लोमड़ी ने उसे और भड़काया। "आप डर रहे हैं क्या, महाराज?"

धूर्तदास को अपनी इज़्ज़त बचाने की फिक्र हुई। उसने सोचा, "यह तो मेरी शान का सवाल है। अगर मैंने इनकार किया, तो ये सब मुझे मूर्ख समझेंगे।"

धूर्तदास लोमड़ी के जाल में फँस गया। वह नदी में उतर गया। लोमड़ी ने चालाकी से कहा, "महाराज! थोड़ा और गहरे जाइए! तभी तो निशान चमकेगा!"

धूर्तदास और गहरे पानी में चला गया। वह जैसे ही पानी में पूरी तरह डूबा, लोमड़ी ने गर्जन को इशारा किया।

"देखो, गर्जन! क्या तुम्हें कोई जादुई निशान दिख रहा है?" लोमड़ी ने चिल्लाकर पूछा।

गर्जन ने ध्यान से देखा। पानी में गधे की पीठ पर कुछ भी चमक नहीं रहा था। गर्जन को अचानक एहसास हुआ कि उसे मूर्ख बनाया गया है। वह गुस्से से लाल हो गया।

अहंकार का अंत और एक बड़ी सीख

गर्जन ने एक ज़ोरदार दहाड़ लगाई, जिससे पूरा जंगल थर्रा उठा। वह तुरंत पानी में कूदा और धूर्तदास को बाहर निकाला। गर्जन का गुस्सा देखकर धूर्तदास की सारी अकड़ हवा हो गई।

"तुमने मुझे मूर्ख बनाया!" गर्जन ने दहाड़ते हुए कहा। "तुम्हारी पीठ पर कोई जादुई निशान नहीं है! तुम सिर्फ़ एक धूर्त और झूठे गधे हो!"

धूर्तदास डर से काँप रहा था। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने गिड़गिड़ाते हुए माफ़ी मांगी। गर्जन ने उसे एक सख़्त सबक सिखाने का फैसला किया। उसने धूर्तदास को जंगल के बीचों-बीच ले जाकर उसकी मूर्खता की कहानी सुनाई। सभी जानवरों ने धूर्तदास का मज़ाक उड़ाया और वह शर्म से पानी-पानी हो गया।

उस दिन के बाद से, धूर्तदास ने अपनी झूठी चालाकी और बड़ाई करना छोड़ दिया। उसने समझ लिया कि अहंकार का फल हमेशा अपमान होता है और झूठ की बुनियाद पर बनी कोई भी जीत हमेशा खोखली होती है।

इस कहानी से सीख:

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए और न ही अपनी झूठी बड़ाई करनी चाहिए। सच्ची महानता अपनी योग्यता में होती है, न कि झूठे दिखावे में। जो लोग दूसरों को धोखा देने की कोशिश करते हैं, उन्हें एक न एक दिन अपने कर्मों का फल ज़रूर मिलता है। याद रखें, ईमानदारी और विनम्रता ही जीवन में हमें सम्मान दिलाती है, न कि झूठी चालाकी। 

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